फूलदेई’, चैत संक्रांति लोकर्पव को फूलों के साथ बच्चों ने बड़ी खुशी से मनाया।

फुलदेई, छम्मा देई,
दैणी द्वार, भर भकार,
ये देली स बारंबार नमस्कार…
(यह देहरी फूलों से भरपूर और मंगलकारी हो, सबकी रक्षा करे और घरों में अन्न के भंडार कभी खाली न होने दे)
के स्वागत की परम्परा विश्व के सभी मानवीय समाजों में पाई जाती है।  अंग्रेजी न्यू ईयर डे,  तिब्बत का लोसर उत्सव, पारसियों का नबरोज  या हिंदू संस्कृति की चैत्र प्रतिपदा। फूलदेइ पर्व  में देवतुल्य बच्चों द्वारा प्रकृति के सुन्दर फूलों से नव संवत्सर से पूर्व उसका  भव्य स्वागत किया जाता है।
चैत्र की संक्रांति पर उत्तराखंड में इस लोक पर्व को मनाया जाता है तथा इसी  दिन बच्‍चों द्वारा घरों की देहरी  जिसे देली भी कहते को फूलों से सजाया जाता है। घर की चौखट का पूजन करते हुए ‘फूलदेई छम्मा देई’ से मंगलकामना की जाती है। इस लोक पर्व में  पड़ोस के बच्‍चों की भूमिका महत्वपूर्ण है।लोक पर्व फूलदेई फूलों की बहार के साथ ही नव वर्ष के आगमन तथा बसंत का भी प्रतीक है। सूर्य उगने से पहले फूल चुनने की परंपरा में वैज्ञानिक पक्ष है, कि सूर्योदय पर भंवरे फूलों पर मंडराने लगते हैं, जिसके बाद परागकण एक फूल से दूसरे फूल में पहुंच जाते हैं और बीज बनने की प्रक्रिया प्रारंभ हो जाती है।  अच्छी पैदावार और उन्नत किस्म के बीज प्राप्त करने के लिए  परागण जरूरी है जो  जीवन के संघर्ष को कम  करने के लिए कुछ फूलों को पौधों से अलग कर दिया जाता है। फूलदेई का त्योहार खुशी बांटने के साथ ही प्राकृतिक संतुलन का त्योहार भी है जहां इस   मौसम में हर तरफ फूल खिले होते हैं, फूलों से ही नव  जीवन का सृजन होता है। चारों तरफ फैली इस बसंती बयार को उत्सव के रूप में मनाया जाता है। और ग्रीष्म ऋतु के बीच का खूबसूरत मौसम, फ्यूंली, बुरांश और बासिंग के पीले, लाल, सफेद फूल और बच्चों के खिले हुए चेहरे. ‘फूलदेई’  की ये पहचान है जो, नए फूलो के खिलने  का संदेश  भी लाता है। लोक जीवन से जुड़े होने का यह पर्व प्रकृति के प्रति आभार प्रकट करता है तथा संरक्षण का संदेश देता है। ‘फूलदेई’, चैत संक्रांति पर तापक्रम बढ़ने से ऊंची पहाड़ियों से बर्फ पिघल जाती है, सर्दियों के मुश्किल दिन कम हो  जाते हैं, उत्तराखंड के पहाड़ बुरांश के लाल फूलों  से लाल नजर आते हैं, तब देश तथा प्रदेश की खुशहाली के  साथ प्रकृति एवम मानव की खुशहाली लिए फूलदेई का त्योहार संदेश लाता है जिसमें किशोरी लड़कियों और छोटे बच्चों का  उत्साह  अधिक शामिल रहता है।
 बदलते समय के साथ तथा लोक जीवन से जुड़े लोक पर्व आज भी  मानव को सचेत करते है की परंपराओं  का निर्वहन प्रकृति के साथ मानव को जोड़ता है तथा  जीवन के सतत विकास को प्रेरित करता है। फूल, चावलों, गुड   से सजी थाली  घर की मुख द्वार देहरी,  पर चावल एवम फूल डालकर लड़कियां उस घर की खुशहाली की दुआ मांगती हैं। फूलदेई, छम्मा देई…जतुकै देला, उतुकै सही…दैणी द्वार, भर भकार। यह लोक जीवन को प्रकृति से जोड़ने का कार्य करता है।। (चैत) का महीना जिसे हिंदू पंचाग के अनुसार चैत्र प्रतिपदा नववर्ष कहा जाता है। इस चैत के महीने में उत्तराखंड के जंगलो में कई प्रकार के फूल खिलते है  जो मनमोहक  व सुंदर होते है।
कुजु, फ्योलि, बुरांस, बासू, डंडोलि, गुर्याल, बिराली, लई, माल्टा, हिन्सर, किंगोड,  पुलम, आरु, खुमानी इस प्रकार कई प्रजाति के फूल और फल इस महीने में खिलते है।  खूबसूरत मौसम, फ्यूंली, बुरांश और बासिंग के पीले, लाल, सफेद फूल और बच्चों के खिले हुए चेहरे ” फूलदेई “ की खुशी है जो प्रेम बाँटने का काम करती है।
बर्फ  पिघलने  से प्रकृति  में नई ऊर्जा का समावेश होता  है   प्रकृति  को ईश्वर की देन माना जाता है इसलिए  इन फूलों को ईश्वर को समर्पित किया जाता है और जिस प्रकार सुंदर व सुगंधित फूल मन को प्रसन्न कर देते है उसी प्रकार इन फूलों के माध्यम से  सारा वातावरण प्रसन्न व सुगंधित किया जा सके ।  उत्तराखंड की सुंदर पर्यावरण, संस्कृति व परंपरा है, पलायन से लोग शहरों में बस चुके हैं और फुुुुलदेेेेई (फुलारी) व संक्रांत से जुड़ी हमारी यह संस्कृति भी उन बंद घरों के साथ कही अंधेरो में लुप्त होती जा रही है। आओ मिलकर फूलदेई मनाए प्रकृति का प्रेम बाटे लोक पर्व का आनंद ले।

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