हरकी पैड़ी छट पूजा की धूम देखने को मिल रही है।छठ पूजा पर डूबते सूर्य को अर्य्घ देने के लिए बिहार और पूर्वांचल के लोग दोपहर से ही हर की पैड़ी समेत विभिन्न गंगा तटों पर एकत्र हो गए।
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हरिद्वार – बिहार और पूर्वांचल की सबसे महत्वपूर्ण छठ पूजा यानी डाला छठ यानी षष्टी को हरिद्वार में भी श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया गया है। छठ पूजा पर डूबते सूर्य को अर्य्घ देने के लिए बिहार और पूर्वांचल के लोग दोपहर से ही हर की पैड़ी समेत विभिन्न गंगा तटों पर एकत्र हो गए थे जहाँ उन्होंने विधिविधान के साथ साक्षात देव सूर्य को अर्य्घ दिया और उनसे राष्ट्र और समाज की उन्नति परिवार के कल्याण समेत अन्य मनोकामनाएं पूरी करने की प्रार्थना की। मान्यता है कि जो भी सूर्य भगवान की आराधना सच्चे मन से करता है उसकी सभी कामनाएँ पूरी होती है और धन धान्य से पूर्ण हो जाता है | हरिद्वार में छठ पूजा के चलते हर की पैड़ी समेत सभी गंगा घाटों पर अनुपम दृश्य देखने को मिला रहा है ऐसा प्रतीत हो रहा है जैसे यह पुर्वांचल ही हो । लोग बैंड बाजो की धुन पर थिरकते नजर आए।
छठ पूजा का वृत चतुर्थी को शुरू होकर सप्तमी को संपन होता है । इस दौरान सूर्य मेष राशिः में प्रवेश करते है और माना जाता है कि सूर्य भगवान की आराधना करने से सभी गृह अनुकूल हो जाते है। यह व्रत शादीशुदा महिलाओं के लिए ही होता है और सूर्य देव को अर्य्घ के साथ फल आदि भी अर्पित किये जाते हैं। इस वृत को करने से सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है और परिवार के साथ ही देश का भी कल्याण होता है। कहा जाता है कि इसी वृत को करने से नाग कन्या, सुकन्या और द्रोपदी को सुख की प्राप्ति हुई थी और इस वृत को करने से संतान यानि पुत्र की प्राप्ति होती है और सुख सम्रद्धि मिलती है।
डाला छठ, छठ पूजा या षष्टी पूजा भारत नहीं पूरे विश्व में इतना व्यापक हो गया है कि जिसकी एक सीधी सादी उदाहरण हरिद्वार के इस गंगा तट ऑयर देखने को मिल रहा है गत वर्षों की भांति यह सब लोग कर रहे है मगर इससे पूर्व भी जनजन्मान्तर से हिन्दू धर्म की जब से सनातन धर्म की व्यवस्था हुई तब से इसका महत्व है, यह सूर्य षष्टी के नाम से विद्यमान है यह प्रकृति देव की पूजा है हमारे इष्ट देव हैं। सनातनधर्मी है हमने प्रकृति का हमेशा पूजन करना चाह और उसी को आराध्य बनाया, और षष्टी इसी आराधना की कड़ी में इसका पूजन करते आ रहे है, षष्टी में सूर्य देव की पूजा करते है। इसकी माता के रूप में भी पूजा करते है और पित्र रूप में भी पूजा करते है। यह सूर्य षष्टी का वृत जैसे तप करते है यह व्रत एक योग है योग के लिए कुछ हट करना पड़ता है और हट करने के लिए इस वृत से बड़ा कोई उदाहरण नहीं होता है। यह व्रत में चार दिवसीय होता है। व्रत और षष्टी सप्तमि को उद्यापन 72 घंटा चलने वाला व्रत काल जाकर समाप्त होगा। अस्तानचगामी सूर्य को अर्घ्य प्रदान करेंगे और दूसरे दिन यानी कल सूर्योदय ने अर्घ्य प्रदान करेंगे तब जाकर यह उद्यापन होगा ,माता बहने घर में इसकी तैयारी तीन दिन से कर रही है ।
हर की पैड़ी समेत अन्य तटों और स्थानों पर छठ पूजा के लिए आये श्रद्धालुओं की उपस्थिति के चलते ऐसा लग रहा था जैसे हरिद्वार में पूरा बिहार और पूर्वांचल का वास हो गया हो। छठ पर्व पूर्वांचल का ही नहीं बल्कि देश का प्रमुख उत्सव बन चुका है और इसे सर्व समाज का पर्व के रूप में मान्यता प्राप्त मिल चुकी है। इस पर्व पर महिलाएं और पुरुष सूर्य की आराधना के साथ छठ उत्सव मानते है और इस दौरान पूर्वांचल की झलक पूरे देश में देखने को मिलती है। छठ वृत के बारे में ललिता मिश्रा कहती है कि 72 घंटे के व्रत में पहले दिन शरीर को शुद्ध किया जाता है और उसके बाद निर्जला व्रत रखा जाता है और आज इसे पूरे समाज द्वारा स्वीकार कर लिया गया है । महिलाओं के लिए यह व्रत बहुत महत्व रखता है और वे कहती है कि यह प्रकृति से जुड़ा है और प्रकृति से ही जीवन चलता है और यह समाज, परिवार और देश के कल्याण के लिए रखा जाता है और इसका एक छोटा सा भी प्रसाद अमृत तुल्य होता है ,यह बहुत कठिन होता है और इसे विवाहित महिलाएं बच्चा होने के बाद ही करती है ।