पिथौरागढ़ जिलें में मनाया जा रहा मोस्टा देवता का ये मेला धार्मिक आस्था का पर्याय है
DevbumidigitalNews Uttarakhand Pithoragarh Report News Desk
पिथौरागढ़ – पहाड़ो में लगने वाले मेले सदियों से चली आ रही संस्कृति और पहाड़ की सभ्यता के साथ साथ धार्मिक आस्था और संस्कृति का भी प्रमुख केंद्र रहा है। इस उपभोक्तावादी दौर में भी पहाड़वासियों के लिए इन मेलों का महत्व कम नहीं हुआ है। आस्था और विश्वास को खुद में समेटा हुआ एक ऐसा ही मेला है सोरघाटी पिथौरागढ़ का मोस्टमानू मेला।
प्राचीन काल से ही देवभूमि उत्तराखण्ड में मेलों का खासा महत्व
रहा है। तेजी से बदलते इस दौर में जहां लोग आधुनिकता के पीछे भाग रहे हैं। वहीं पिथौरागढ़ के मोस्टमानू मेले में लोगों का उमड़ा जनसैलाब इन मेलों के महत्व को बयां कर रहा है। सदियों से पिथौरागढ़ जिलें में मनाया जा रहा मोस्टा देवता का ये मेला धार्मिक आस्था का पर्याय है। मोस्टा देवता को यहां के लोग बारिश के देवता यानी वरूण देव के रूप में पूजते आये है। मान्यता है प्राचीन काल में बारिश न होने की वजह से इस इलाके में भयंकर अकाल पड़ा। तभी लोगों ने इस मंदिर में मोस्टा देवता का यज्ञ कर उन्हे प्रसन्न किया और झमाझम बारिश होने लगी। तभी से ये मेला हर साल यहां मनाया जाता है। लोगो का मानना है कि वरुण देव के रूप में पूजे जाने वाले भगवान मोस्टा की बारिश के लिए किए जाना वाला यज्ञ आज तक कभी असफल नही हुआ।
मोस्टमानू मेलें का मुख्य आकर्षण है मोस्टा देवता का ये डोला। जिसे कंधा देने के लिए श्रद्धालुओं मे होड़ लगी रहती है। मान्यता है कि जो भी इस डोले को कंधा देता है उस पर मोस्टा देवता की कृपा सदैव बनी रहती है। हर साल भादों माह की पंचमी के दिन मोस्टा देवता का ये डोला आता है और मौजूद हज़ारों भक्तों के सुख समृद्धि का आशीर्वाद देकर चला जाता है। इस मेलें को देखने लोग दूर दूर से यहाँ आते है। उनका मानना है कि ये मेंला लोगों को एकता के सूत्र में बांधता है।
मोस्टमानू मंदिर में रखा ये भारी पत्थर भी मेलें मे आने वाले
श्रद्धालुओं की आस्था का प्रमुख केन्द्र है। प्राचीन मान्यता है कि जो कोई भी सच्चे मन से इस पत्थर को उठाता है उसकी सभी मनोकामनाएं सदैव पूर्ण होती है। इसीलिए युवाओं में इस पत्थर को उठाने का जुनून सवार रहता है ताकि उनकी मनोकामनाएं पूरी हो सके।
ये मेला पहाड़ के कृषि जीवन को तो दर्शाने के साथ ही पहाड़ की सास्कृतिक के इतिहास को भी बयां करता है। आज के आधुनिकता के दौर में जहां लोग अपनी जड़ो से दूर होते चले जा रहे है। वही पहाड़ो में मेले पर्व आज भी लोगों को एकता के सूत्र में बाधने में कामयाब है।